हठधर्मिता के साथ मोदी सरकार ने लागू किया #मज़दूर_विरोधी_लेबर_कोड
तमाम विरोधों के बावजूद मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के हित में मज़दूर विरोधी कर श्रम संहिताओं को दबंगई के साथ लागू कर दिया।
बिहार चुनाव में बम्पर जीत के साथ ही केंद्र सरकार ने आज दिनांक 21 नवंबर 2025 से लंबे संघर्षों से हासिल श्रम कानूनी अधिकारों को खत्म करते हुए मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी, जो मज़दूरों के हक-अधिकार को बुरी तरीके से छिन्न-भिन्न कर देगी।
क्यों घातक हैं चार श्रम कोड?
चार श्रम संहिताओं के मूल में है ‘हायर एण्ड फायर’ यानि मालिकों की मर्जी, जब चाहो काम पर रक्खो, जब चाहो निकाल दो! काम के घंटे मालिक की मनमर्जी होगी। अवकाश, कार्य के घंटों आदि की हेरा फेरी की गई है। ठेका प्रथा कानूनी बन जाएगा। ट्रेनी के नाम पर ‘फोकट के मज़दूरों से काम करना वैध होगा। छाँटनी-बंदी आसान होगी, यूनियन बनाना, आंदोलन और समझौता लगभग असंभव होगा; श्रम न्यायालय खत्म होंगे और श्रम अधिकारी फैसिलिटेटर होंगे, जिनका काम सलाह देना होगा। असंगठित क्षेत्र के मज़दूर और असुरक्षित होंगे!
नए श्रम कोड की कुछ बानगी देखें-
★ नए श्रम कोड में मज़दूर, उद्योग एवं कार्य दिवस की नई परिभाषा है।
★ मालिक/नियोक्ता की भी परिभाषा को बदल दिया गया है। अब ठेकेदार भी मालिक होगा। यानी ठेका मज़दूरों के लिए कंपनी की पीएफ, वेतन, अवकाश आदि की कोई जवाबदेही नहीं होगी।
★ मज़दूर की परिभाषा को बदला गया है जिसमें ₹18000 से कम मासिक वेतन पाने वाले को ही मजदूर कहा गया है और इसके ऊपर कमाने वालों को कर्मचारी कहा गया है। इससे तमाम मज़दूर यूनियन बनाने के अधिकार सहित अपने तमाम अधिकारों से वंचित हो जाएगा।
★ स्थाई रोजगार की जगह फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट (नियत अवधि रोजगार) होगा। ट्रेनी के बहाने क़ानूनन मालिकों को ‘फ़ोकट के मज़दूर’ मिलेंगे।
★ नए कानून से श्रमिकों का बड़ा वर्ग कानून के दायरे से बाहर हो जाएगा। पहले जिस संस्थान में 20 लोग काम करते थे, उन्हें भी संरक्षण था। अब यह संख्या 50 करने का प्रावधान है। गैर कानूनी ठेका प्रथा को कानूनी रूप भी मिल जाएगा क्योंकि ऐसे संस्थान में ठेकेदार को लाइसेंस लेने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई है।
★ अन्य कई बाधाओं के अलावा यूनियन बनाने से पहले सभी सदस्यों के नामों का सत्यापन करवाना अनिवार्य होगा जो प्रबंधन द्वारा नियुक्त अधिकारी करेगा।
★ यदि माँगपत्र या किसी मुद्दे पर यूनियन और नियोक्ता के बीच बातचीत फेल हो जाती है तो जानकारी सरकार को दी जाएगी। इसके बाद मामला ट्रिब्यूनल भेज दिया जाएगा। जब तक वहां अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक हड़ताल की इजाजत नहीं होगी। हड़ताल अवैध मानी जाएगी। यही नहीं, सामूहिक छुट्टी को भी हड़ताल की श्रेणी में रखा गया है।
★ सामूहिक समझौते की जगह मालिक एक व्यक्ति से भी समझौता कर सकता है। यह किसी भी मज़दूर के लिए समझना कठिन नहीं है, विशेष रूप से मांग पत्र देने के बाद की स्थितियों को।
★ ज्यादातर मामलों में अब लेऑफ, छँटनी, बंदी या तालाबंदी के लिए नियोक्ता को अनुमति लेने की जरूरत नहीं रहेगी। इस दायरे में मज़दूरों की एक बड़ी आबादी आ जाएगी।
★ आर्टिफिसियाल इंटीलीजेंस (एआई) द्वारा कार्य कराने का प्रचलन बढ़ने से मज़दूरों की संख्या और भी कम होती जाएगी।
★ नए नियम लागू होने के बाद श्रमिक के हाथ में वेतन कम आएगी। क्यों कि मूल वेतन हर माह की CTC से 50% या अधिक होगी।
★ नया श्रम कानून आने के बाद सिर्फ दो दिन में श्रमिकों का पूरा और अंतिम भुगतान हो जाएगा। मतलब तुरत-फुरत कुछ भुगतान देकर छँटनी का रास्ता साफ़ होगा।
★ वेतन निर्धारण के लिए काम की जगह और मज़दूर के कौशल को आधार बनाया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारण के लिए आबादी के अनुसार देश को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटने की बात है।
★ न्यूनतम मज़दूरी तय करने वाले बोर्ड का प्रारूप स्पष्टतः मालिकों के पक्ष में बना दिया गया है। मज़दूरी तय करने का वह फार्मूला पूरी तरह से बदल दिया गया है। यानी मालिक मनमर्जी न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए कानूनी रूप से मजबूत हो जाएंगे।
★ ईएसआई के तहत पहले की तरह सुरक्षा की गारंटी समाप्त कर दी गई।
★ ईपीएफ में पहले की सुरक्षा को कम कर दिया गया है। ईपीएफ जमा राशि को निकालने में कई रुकावटें बनाई गई है, क्योंकि अब इपीएफ शेयर मार्केट पर आधारित कर दिया गया है।
★ बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में होगी, जिनके अधिकार और सामाजिक सुरक्षा बेहद कम होंगे।
★ नए कानून में ओला, उबर, जोमैटो, ब्लिनकिट आदि ऑनलाइन कम करने वाले गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर कर्मकार की परिभाषा से भी बाहर होंगे, सामाजिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं।
धर्मांधता से बाहर निकलकर इसके खिलाफ एकजुट मुखर आवाज, जुझारू निर्णायक संघर्ष के लिए तैयारी का यह वक़्त है।

